January 31, 2011

नर्मदा

चिकने सफ़ेद पत्थरों की नींव पर,
पारदर्शी चादर में लिपटे रेत कण |

सूर्योदय से सूर्यास्त की गोद है ,
बहते संगीत से मल्लाह के शोर तक ,
किनारे बैठे एकाकी की साथी है |

सुबह के पानी में उठते हुए धुंए में ,
मंदिर की धूप की सुगंध है |

फूलों के पत्तल से, राख की ढेर तक ,
पानी में खेलते बच्चों से ,
घाट की कच्ची सीढ़ियों पर पड़ी
नाव की जीर्णता तक |

एक युग की किताब है |
जिज्ञासा है , पिपासा है |
वह अंत है  , वह अंतहीन है |

सुन्दर है , मेरी है |
वह नर्मदा है |