मेरी गोद सूनी थी ।
सूखी पत्तियों में लिखता रहा ,
कुछ नया- पुराना सा ,
गीले कालीन से धूल उड़ती रही ।
फूलों के झड़ने का समय हो चला है ।
यामिनी का पारिजात ।
अचानक श्रृंगारित हूँ ,
इस बेला में ,
सफ़ेद नारंगी सुरभित गोद से ।
मैं प्रतीक्षारत था।
साबरमती , तुम कहाँ थी साबरमती ?
इस विहीन में ,
ठंडी रेत को तन से लगाये ,
कल लौट जाऊंगा ।
नहीं देख सकता ,
हवा के साथ की ये अठखेलियाँ ।
छेड़ छेड़कर दूर होती मुस्कान ।
तुम्हारे पीछे खड़ी स्त्री का प्रेम मिला था मुझे ।
एकाएक पूछती है ,
"मुझे छोड़कर
किसी को पा सकोगे ?"
सूखी पत्तियों में लिखता रहा ,
कुछ नया- पुराना सा ,
गीले कालीन से धूल उड़ती रही ।
फूलों के झड़ने का समय हो चला है ।
यामिनी का पारिजात ।
अचानक श्रृंगारित हूँ ,
इस बेला में ,
सफ़ेद नारंगी सुरभित गोद से ।
मैं प्रतीक्षारत था।
साबरमती , तुम कहाँ थी साबरमती ?
इस विहीन में ,
ठंडी रेत को तन से लगाये ,
कल लौट जाऊंगा ।
नहीं देख सकता ,
हवा के साथ की ये अठखेलियाँ ।
छेड़ छेड़कर दूर होती मुस्कान ।
तुम्हारे पीछे खड़ी स्त्री का प्रेम मिला था मुझे ।
एकाएक पूछती है ,
"मुझे छोड़कर
किसी को पा सकोगे ?"