कल जब आप न होंगे ,
सूनी गलियों में हम
खड़े रहेंगे आहिस्ता सी शाम को देखते,
और फिर वो गुलमोहर नज़र आएगा
चिलचिलाती धूप में एक उम्मीद |
निकल पड़ेंगे मुस्कान लिए
एक उसी छाँव के सहारे |
कुछ वर्षों की यादें ,और उस फूल की लाली,
लेकर सहेज लेंगे |
खड़ा होगा वह
सुन्दरता की पराकाष्ठा पर |
और सीखना होगा उस से
की बीती हुई संध्या की लकीर
खूबसूरत बन जाती है |
वह
गुलमोहर |