April 08, 2010

गुलमोहर

कल जब आप न होंगे ,
सूनी गलियों में हम
खड़े रहेंगे आहिस्ता सी शाम को देखते,
और फिर वो गुलमोहर नज़र आएगा
चिलचिलाती धूप में एक उम्मीद |

निकल पड़ेंगे मुस्कान लिए
एक उसी छाँव के सहारे |
कुछ वर्षों की यादें ,और उस फूल की लाली,
लेकर सहेज लेंगे |

खड़ा होगा वह
सुन्दरता की पराकाष्ठा पर |
और सीखना होगा उस से
की बीती हुई संध्या की लकीर
खूबसूरत बन जाती है |
वह
गुलमोहर |

1 comment:

  1. Heh, this reminds me of home, we used to have gulmohar trees planted all along the streets which used to bloom red in summer, and well, now whenever I see Gulmohar, I am reminded of those summers when I was a kid.

    I guess the poem tries to use gulmohar in the same way, as a symbol of recollection of memories? :)

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