July 25, 2010

तुम

तुम ,
अभय , स्थिर , गहन |
समुद्र में द्वीप से ,
स्वयं में पूर्ण |

मैं ,
विहीन , निश्चल , जिज्ञासा से भरी |
मर्यादा की छाँव में पली |
उस पक्षी की तरह,
जिसका आकाश सीमित है
उस द्वीप तक ,
तुम तक |

जब तक साथ हूँ
निश्चित हूँ , उस ढाँचे की कला में ,
जो तुमने बनाया है
मेरे लिए ,
अपने धर्म से , या शायद प्रेम से |

"स्व" के कितने ही पर्याय जान लूँ ,
अलग नहीं हो सकती ,
तुम्हारे अस्तित्व से |

तुम ,
विराट , साहसी , असीम |

मैं ,
लज्जित , निरीह , तुच्छ |

July 18, 2010

कुर्सी के पीछे बैठा लड़का

कक्षा में बैठी छात्रा ,
और कुछ कहती से एक आकृति |
खिल-खिलाहट , चहकना ,हंसी |
सीखने का प्रयत्न करना ,रुकना ,
एक अजीब से उत्साह को देखना |

और कुर्सी के पीछे बैठा वह लड़का|
हँसता , अपने आप में निर्मग्न ,
उदासीन विषय से कुछ दूर ,
वह विचारों से बातें करता हुआ |
ढूँढने के प्रयत्न में ,उसे जो
अथाह समुद्र के बीच है ,
जो जीवन के सच का पर्याय है ,
जो चंचल है, स्वच्छ  है , प्रेम है |

सोचती छात्र की बाहर आ सकूँ ,
इस सोच से , इस अंधी बनावट से
और देख सकूँ उस रेखा के पार ,
जहाँ रौशनी है ,मद्धिम सी राह पर चलती |
और फिर लिखने लग जाती वह ,
कागज़ और कलम से बंधी हुई |

आकृति अभी भी बोल रही है |