कक्षा में बैठी छात्रा ,
और कुछ कहती से एक आकृति |
खिल-खिलाहट , चहकना ,हंसी |
सीखने का प्रयत्न करना ,रुकना ,
एक अजीब से उत्साह को देखना |
और कुर्सी के पीछे बैठा वह लड़का|
हँसता , अपने आप में निर्मग्न ,
उदासीन विषय से कुछ दूर ,
वह विचारों से बातें करता हुआ |
ढूँढने के प्रयत्न में ,उसे जो
अथाह समुद्र के बीच है ,
जो जीवन के सच का पर्याय है ,
जो चंचल है, स्वच्छ है , प्रेम है |
सोचती छात्र की बाहर आ सकूँ ,
इस सोच से , इस अंधी बनावट से
और देख सकूँ उस रेखा के पार ,
जहाँ रौशनी है ,मद्धिम सी राह पर चलती |
और फिर लिखने लग जाती वह ,
कागज़ और कलम से बंधी हुई |
आकृति अभी भी बोल रही है |
Brilliant :)
ReplyDeletecould almost sense it. ;)
और देख सकूँ उस रेखा के पार ,
ReplyDeleteजहाँ रौशनी है ,मद्धिम सी राह पर चलती |
शायद यह अंतर्द्वन्द है
शायद यह एहसास है
शायद कोई आसपास है
सुन्दर रचना
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteहाँ आकृति बोल रही है .............सुन्दर रचना भी ब्लॉग श्रृंगार भी अनुभूति भी .
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत करता हूँ .सार्थक लेखन और सामूहिक मंच पर आपसी सोच और विमर्श का आदान प्रदान की स्वस्थ्य परंपरा ही हम सबका उद्देस हो तथा मत विभिन्नता में भी शालीनता हम बनाये रख सकें यही प्रयास भी .शुभकामनाओं सहित -राज सिंह
पुनश्च : यदि आपने वर्ड वेरिफिकेसन लगाया हो तो उसकी उपयोगिता कुछ खास नहीं है ,हटा दें .हाँ यदि सोचते हों की टिप्पणियों में अभद्रता पाई जा सकती है तो मोदेरेसन का इस्तेमाल कर सकते हैं .
"सोचती छात्रा कि बाहर आ सकूँ"
ReplyDeleteये सोच ही तो है जो ऐसा और इतना कुछ लिखवाती है .......सोच को शब्द देने का सार्थक और प्रशंसनीय प्रयास.
Beautiful creation .
ReplyDeletegreat
ReplyDeleteSurabhi, This one is amazing.
ReplyDeleteI mean everyone can relate one's self to this poem. :)
The incident depicted in the poem is very general yet a metaphor of important things.
You are a hidden gem.
:D
you are good, Sur. And I love that you write in Hindi.
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