October 09, 2010

यात्रा

मन के पाट पर स्मित रेखाएं ,
आधी अधूरी बातें ,
अप्रत्याशित वादों की
स्याह गहराई ,
मुरझा तो गई , पर
जीवित है,मंद मंद सी टीस में |

इस  क्षितिज से उस क्षितिज तक ,
एक संकरी पगडण्डी पर ,
अपेक्षाओं के जाल हैं ,
आशा के तिनके हैं ,
तर्क और विवेक से लड़ते हुए |

उस पर छोटे बड़े क़दमों से चलना है |
रोज की दूरी ,
अकेले तय करने के निश्चय को चुनौती देती है |
रेत के पदचिन्ह हैं ,
भावना की हवा में नहीं टिकेंगे,
मेरे संघर्ष के परिणाम की तरह |

संवेदना में मिथ्या है |

मेरी यात्रा तुमसे दूर ,
बहुत लम्बी है , बहुत कठिन है |

3 comments:

  1. दिल कि गहराई से लिखी गयी रचना बधाई

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  2. straight from the heart.......touches straight to the heart :-)

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  3. Itz beautiful saru... I'm goin to call u. Ur work tells me a lot of things u dun tell me verbally... Love you

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